
मंदिर का इतिहास
श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव विशवनाथ गिरी जी ने बताया कि पुरातन काल में अरुणा संगम तीर्थ की महिमा महाभारत वामन-पुरान, गरूड़ पुराण, संकद पुराण, पदम पुराण आदि ग्रंथों में वर्णित है। मंदिर के विषय में एक लोक कथा है कि ऋषि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र में जब अपनी श्रेष्ठता साबित करने की जंग हुई, तब ऋषि विश्वामित्र ने मां सरस्वती की सहायता से बहा कर लाए गए ऋषि वशिष्ठ को मारने के लिए शस्त्र उठाया, तभी मां सरस्वती ऋषि विशिष्ट को वापस बहा कर ले गई। तब ऋषि विश्वामित्र ने सरस्वती को रक्त व पींप सहित बहने का श्राप दिया। इससे मुक्ति पाने के लिए सरस्वती ने भगवान शंकर की तपस्या की और भगवान शंकर के आशीर्वाद से प्रेरित 88 हजार ऋषियों ने यज्ञ द्वारा अरूणा नदी व सरस्वती का संगम कराया। तब इस श्राप से सरस्वती को मुक्ति मिली। नदियों के संगम से भोले नाथ संगमेश्वर महादेव के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुए।
